दिनाँक 04 - 10 - 2022
।। ॐ चमुस्तम्भनाय नमः ।।
जब धर्म, संस्कार, राजनीति, थियेटर, साहित्य, कला और सामाजिक संस्थाएं अपने संवाद या अभिव्यक्ति में विगत या वर्तमान से सम्बन्धित तथ्यों की सच्चाई को ईमानदारी से नहीं रखते तब सभी अपनी प्रासंगिकता की मूल अवधारणा को खो देते है जो भयावह अराजकता को आमन्त्रण देते है।
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