दिनाँक 27 - 02 - 2025
।। ॐ अबलोगणाय नमः ।।/
आलोचना
आलोचना सोच समझकर करें क्योंकि सार्वजनिक रूप से मनुष्य की गई आलोचना उसको अपमानित व पीड़ा पंहुँचाती है और एकांत में उसे बताने पर यही आलोचना मार्गदर्शक बनकर उसमे आवश्यक सुधार व उत्साहवर्धन करती है ।
शुभ प्रभात । आज का दिन शुभ व मङ्गलमय हो । भगवान शंकर जी की सदा आप पर कृपा बनी रहे । जय शंकर जी की ।
आदर सहित
रजनीश पाण्डेय
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें