सुभाषातानि साधूनां दर्शनं पुण्यं तीर्थभूता हि साधवः। कालेन फलते तीर्थं सद्यः साधुसमागमः।। सन्त महात्माओं के दर्शन मात्र से पुण्य की प्राप्ति हो जाती है क्योंकि वे तीर्थों के समान पवित्र होते हैं। तीर्थवास करने का सुपरिणाम कुछ समय के पश्चात प्राप्त होता है, परन्तु सन्तों की सत्सङ्गति का सुपरिणाम तुरन्त प्राप्त हो जाता है। कुलीनैः सह सम्पर्क पण्डितै: सह मित्रताम्। ज्ञातिभिश्च समं मेल कुर्वाणो न विनश्यति॥ कुलीनों के साथ संपर्क, पंडितो के साथ मैत्री, (और) ज्ञातिजनों के साथ मेल रखने वाला इन्सान कभी नष्ट नही होता। विद्या मित्रं प्रवासेषु, भार्या मित्रं गृहेषु च । व्याधितस्यौषधं मित्रं, धर्मो मित्रं मृतस्य च।। विदेश में ज्ञान, घर में अच्छे स्वभाव और गुणस्वरूपा पत्नी, औषध रोगी का, तथा धर्म मृतक का सबसे बड़ा मित्र होता है। एको धर्म: परश्रेय:, क्षमैका शान्तिरुत्तमा। विद्यैका परमा तृप्ति:, अहिंसैका सुखावहा।। केवल धर्म ही परम कल्याण कारक है, एकमात्र क्षमा ही शान्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है।एक विद्या ही परम सन्तोष देने वाली है, अतः इन तीनों को अवश्य धारण करना चाहिए ।